डॉ. प्रभुराम ने तोड़ी चुप्पी, स्वास्थ्य आयुक्त डॉ. संजय गोयल की कार्यशैली संदेह के घेरे में
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विजया पाठक
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भोपाल । स्वास्थ्य विभाग के मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी की पत्नी डॉ. नीरा चौधरी को संयुक्त निदेशक के पद पर प्रमोट किए जाने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। प्रमोशन किए जाने के लगभग चार दिन बाद डॉ. प्रभुराम चौधरी ने इस पूरे मामले पर चुप्पी तोड़ते हुए बेतुका बयान देते हुए प्रदेश के सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए है। प्रभुराम ने कहा कि प्रमोशन नहीं प्रभार दिया है और इस पूरे मामले में किसी के साथ पक्षपात नहीं हुआ है। यदि आपको समस्या है तो आप स्वास्थ्य आयुक्त डॉ. संजय गोयल से बात कर सकते है।
मंत्री जी के इस बयान के बाद सवाल खड़े होते है स्वास्थ्य आयुक्त डॉ. संजय गोयल की कार्यशैली पर। अखिल भारतीय स्तर के एक अधिकारी द्वारा इस तरह की कार्यशैली को अपनाना कितना सही है यह तो समय बताएगा। लेकिन यदि यह सच है कि डॉ. प्रभुराम चौधरी के दबाव के चलते स्वास्थ्य आयुक्त ने मंत्री जी की पत्नी डॉ. नीरा चौधरी को जिला स्वास्थ्य अधिकारी से सीधे संयुक्त निदेशक के पद पर बैठाया है तो यह गलत है। सूत्रों की मानें तो डॉ. प्रभुराम कांग्रेस शासनकाल से ही पत्नी को संयुक्त निदेशक के पद पर बैठाने के लिए लगातार प्रयासरत थे। लेकिन कमलनाथ शासन वाली सरकार में उनकी दाल नहीं गल सकी। इसके लिए उन्होंने कई बार कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं तक ज्योतिरादित्य सिंधिया के माध्यम से यह बात भी पहुंचाई कि उन्हें स्वास्थ्य विभाग का मंत्री बनाया जाए, लेकिन बदकिस्मती रही कि उन्हें स्कूल शिक्षा विभाग सौंपा गया। लेकिन 15 महीनें की कांग्रेस सरकार के शासन के बाद प्रभुराम ने दल बदलकर भाजपा का दामन साधा और स्वास्थ्य मंत्री बनने के बाद मौका देखते ही अपनी इच्छानुसार पत्नी का प्रमोशन कर उन्हें उच्च स्तर का पद दे दिया। सूत्र बताते है कि डॉ. प्रभुराम की ऐसी ही कार्यशैली है और वो इसी तरह से अपनी प्रकृति अनुरुप समय समय पर सिस्टम की परवाह न करते हुए अक्रोस द लाइन जाकर काम करना पसंद करते है जो उन्होंने कांग्रेस शासनकाल के दौरान भी करने की कोशिश की थी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या प्रदेश की अफसरशाही इस कद्र मंत्रियों के दबाव में आकर काम करती है कि अगर मंत्री कोई नियमविरुद्ध भी उनसे काम करवाए तो वो उसे कर जाते है। अफसरों को यह बात समझना होगी कि मंत्री का पद पर बैठे व्यक्ति समय समय पर बदल जाते है, लेकिन अखिल भारतीय स्तर के अफसरों को इसी सिस्टम में रहकर काम करना पड़ता है। खैर, अब देखने वाली बात यह होगी 1042 सीनियर डॉक्टर्स को क्रॉस कर जिस तरह से डॉ. नीता चौधरी को संयुक्त निदेशक बनाया गया है इस पूरे मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान क्या संज्ञान लेते है। अभी तक उन्होंने इस पूरे मसले पर पब्लिकली कोई बात नहीं कि है और ना ही उन्होंने इसकी जांच कराने जैसा कोई आदेश दिया है। कहीं इसका मतलब यह तो नहीं कि सिंधिया खेमे के डॉ. प्रभुराम चौधरी के दबाव में मुख्यमंत्री स्वयं हो और इसीलिए अभी तक वो इस पूरे मसले को अनदेखा किए हुए है।